क़ियामत के रोज़ हसरत
फरमाने मुस्तफा( सल्लाहु अलैहि वसल्लम) " सब से ज्यादा हसरत क़ियामत के दिन उस को होगी जिसे दुनिया में इल्म हासिल करने का मौक़ा मिला मगर उस ने हासिल न किया और उस शख्स को होगी जिस ने इल्म हासिल किया और दुसरो ने तो ने उस से सुन कर नफ़ा उठाया लेकिन इस ने न उठाया (या'नी उस इल्म पर अमल न किया )"
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बुखारी शरीफ में है :' हजरते सय्यदुना आईशा सिद्दीका '(रदिअलहु ता'आला अन्हा ) फरमाती है:-
"कि रसूलुल्लाह ( सल्लाहु अलैहि वसल्लम) शा' बान से जियादा किसी महीने में रोज़े न रखा करते बल्कि पूरे शा'बान ही के रोज़े रख लिया करते थे और फ़रमाया करते :
अपनी इस्तिता'अत के मुताबिक अमल करो कि अल्लाह ता'आला उस वक्त तक अपना फ़ज़्ल नहीं रोकता जब तक तुम उक्ता न जाओ"
"कि रसूलुल्लाह ( सल्लाहु अलैहि वसल्लम) शा' बान से जियादा किसी महीने में रोज़े न रखा करते बल्कि पूरे शा'बान ही के रोज़े रख लिया करते थे और फ़रमाया करते :
अपनी इस्तिता'अत के मुताबिक अमल करो कि अल्लाह ता'आला उस वक्त तक अपना फ़ज़्ल नहीं रोकता जब तक तुम उक्ता न जाओ"
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उम्मुल मुअमिनीन 'हज़रते सय्यदुना आइशा सिद्दीका'(रदिअलहु ता'आला अन्हा ) फरमाती है:-
मैं ने नबिय्ये करीम राऊफुर रहीम (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) को फरमाते हुए सुना : "अल्लाह ता'आला(ख़ास तौर पर) चार रातो मैं भलाइयों के दरवाजे खोल देता हैं :
(1)बकर ईद की रात ,
(2)ईदुल फ़ित्र की रात ,
(3)शा'बान की पन्द्रवी रात कि इस रात में मरने वालो के नाम और लोगो के रिज़्क़ और (इस साल ) हज करने वालो के नाम लिखे जाते है ,
(4)अ-रफा की (यानी 8 और 9 जुल हिज़्ज़ा की दरमियानी ) रात अज़ाने (फज्जर) तक"
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मैं ने नबिय्ये करीम राऊफुर रहीम (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) को फरमाते हुए सुना : "अल्लाह ता'आला(ख़ास तौर पर) चार रातो मैं भलाइयों के दरवाजे खोल देता हैं :
(1)बकर ईद की रात ,
(2)ईदुल फ़ित्र की रात ,
(3)शा'बान की पन्द्रवी रात कि इस रात में मरने वालो के नाम और लोगो के रिज़्क़ और (इस साल ) हज करने वालो के नाम लिखे जाते है ,
(4)अ-रफा की (यानी 8 और 9 जुल हिज़्ज़ा की दरमियानी ) रात अज़ाने (फज्जर) तक"
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